दिल का जब दर खुला नहीं होता
कोई अपना- परा नहीं होता
गर न आते वो मेरी बाँहों में
हाल दिल का बुरा नहीं होता
पूछ मत सबसे मेरे घर का पता
शख्स हर इक भला नहीं होता
तेरे आने से फूल खिल जाते
बज़्म भी बेमज़ा नहीं होता
उसको मैं पूजूँ क्यों मेरे "रामिश"!
हुस्न आख़िर ख़ुदा नहीं होता
कैसी आफ़त पड़ी है या अल्लाह
दिल से यूँ दिल जुदा नहीं होता
सब हैं मोहताज तेरी रहमत के
यूँ किसी का भला नहीं होता
प्यार राहत तलाशता ही नहीं
दर्द जब दरमियाँ नहीं होता
वस्ल की खुशियों ने मिटा डाला
वरना"लुत्फी" मरा नहीं होता..........
Wednesday, January 5, 2011
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