ऐ हवा तू क्यों दिखती नहीं?
चलती रहती है,रुकती नहीं
कव्वे बोले हैं क्या कांव-कांव
कुछ समझ में ये अपनी नहीं
बस क़यामत है उसकी हंसी
जिद पे आये तो रुकती नहीं
उसकी सीरत है सबसे अलग
जो किसी में भी मिलती नहीं
बेवफा मैं उसे क्यों कहूँ
ख़ुद वफ़ादार मैं ही नहीं.............
चलती रहती है,रुकती नहीं
कव्वे बोले हैं क्या कांव-कांव
कुछ समझ में ये अपनी नहीं
बस क़यामत है उसकी हंसी
जिद पे आये तो रुकती नहीं
उसकी सीरत है सबसे अलग
जो किसी में भी मिलती नहीं
बेवफा मैं उसे क्यों कहूँ
ख़ुद वफ़ादार मैं ही नहीं.............
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