पलक की ओट से छुप-छुप के वार करते हैं
हमें पता है वो हमसे ही प्यार करते हैं
वो उनकी ज़ुल्फ़ है जैसे कोई घना जंगल
हम उनकी ज़ुल्फ़ में घुस कर शिकार करते हैं
मिलें जो तनहा तो शर्म-ओ-हया करें ही नहीं
बड़े ही शौक से बातें दो-चार करते हैं
उधारी खाएं जो औरों की चुगलियाँ भी करें
भिकारी होके अमीरी शुमार करते हैं
अदा-ए-हुस्न से"लुत्फी"भी बच नहीं सकते
अदा से अपने वो सबको बीमार करते हैं............
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