तुझ सा हसीं इक सनम धुंडते हैं
तुम्हारा ही नक्श-ए-क़दम धुंडते हैं
बे ज़ुबां हो गया हुस्न को देख कर
हाल-ए-दिल जो कहे वो क़लम धुंडते हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें हैं लटकी घटा की तरह
प्यासे भी अब घटाओं को काम धुंडते हैं
दूर दुनिया से हम दोनों रहने लगे
बाग़-ए-मस्ती को दुनिया के ग़म धुंडते हैं
प्यार करते रहे,दर्द बढ़ता रहा
"लुत्फ़ी"को अब तो उनके सितम धुंडते हैं...........
तुम्हारा ही नक्श-ए-क़दम धुंडते हैं
बे ज़ुबां हो गया हुस्न को देख कर
हाल-ए-दिल जो कहे वो क़लम धुंडते हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें हैं लटकी घटा की तरह
प्यासे भी अब घटाओं को काम धुंडते हैं
दूर दुनिया से हम दोनों रहने लगे
बाग़-ए-मस्ती को दुनिया के ग़म धुंडते हैं
प्यार करते रहे,दर्द बढ़ता रहा
"लुत्फ़ी"को अब तो उनके सितम धुंडते हैं...........
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