कभी-कभी तेरी यादें बहुत रुलाती हैं
जो हों अकेले कहीं तो मुझे सताती हैं
मैं एक बात कहूँ गर तुझे बुरा ना लगे
वो ग़ैर से तेरी बातें बहुत जलाती हैं
ये ज़ुल्फ़ें उड़के बिखरती हैं जो तेरे रुख पर
इक आग सा मेरे दिल में कहीं लगाती हैं
जो तेरे दिल के हंसी बाग़ की दो हैं कलियाँ
वो तेरी यादों के झुरमुट से कुछ बताती हैं
ऐ"लुत्फी"बैठा है,क्यों भूल के हंसी मंज़र?
किसी की गर्म सी सांसें तुझे बुलाती हैं...........
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