ऐ दोस्त मेरे तू जाँ है मेरी, तू है जहाँ मैं हूँ वहीं
ग़म जो भी हो छू हो जाता है, लेता हूँ तेरा जो नाम कहीं
हर रोज़ हज़ारों मिलते हैं,पर तुझ से अच्छा कोई नहीं
लाखों में तू ही सच्चा है और तुझ से सच्चा कोई नहीं
जो तू ज़िंदा तो मैं ज़िंदा, जो तू नहीं तो मै नहीं
ऐ दोस्त मेरे तू जाँ है.........................................
अंदाज़ तेरा तेरे जैसा, तू ख़ुद जैसा ही लगता है
हर बात नई सी तेरी तू हर वक़्त नया सा लगता है
अंदाज़-ए-बयां क्या ज़िक्र करूँ,ये मेरे बस की बात नहीं
ऐ दोस्त मेरे तू जाँ है...........................................
जब साथ तेरा हो तो मुझको हर सिम्त बहारें दिखती हैं
अँधेरा उजाला लगता है और रातें दिन हो जाती हैं
गर साथ तेरा हो तो मुझको प्यारा किसी का साथ नहीं
ऐ दोस्त मेरे तू जाँ है..................................................
तुझसा ही मीत मिले सबको ऐसी सबकी तक़दीर कहाँ
जो सामने तेरे टिक पाये, दुनिया में ऐसा वीर कहाँ
औरों से तुलना क्या करना, तू कहीं है, और कहीं
ऐ दोस्त मेरे तू जाँ है......................................
या रब! उसके ग़म मेरे हों और मेरी खुशियाँ उसकी हों
काँटों का सेज़ मिले मुझको,कलियों की बिस्तर उसकी हो
ऐ "रामिश","लुत्फी" कहता है, तू देव है, इन्सान नहीं
ऐ दोस्त मेरे तू जाँ है..............................................
Thursday, December 30, 2010
Wednesday, December 29, 2010
हौले-हौले ही सही .............
क्यों कर मांगी थी मुहब्बत की दुहाई मैंने
आग ख़ुद अपने ही दिल में थी लगाई मैंने
सुब्ह ना चैन मिला, शाम को ना क़रार मिला
रात भर रोके थी वक़्त बिताई मैंने
याद आती है मिलन की वो पहली रात
हौले-हौले ही सही थी उनको सती मैंने
दिल में उतरे तो ज़ख्म-ए-दिल को देख लिया
दाग़-ए-दिल को थी कैसे-कैसे छुपाई मैंने...................
आग ख़ुद अपने ही दिल में थी लगाई मैंने
सुब्ह ना चैन मिला, शाम को ना क़रार मिला
रात भर रोके थी वक़्त बिताई मैंने
याद आती है मिलन की वो पहली रात
हौले-हौले ही सही थी उनको सती मैंने
दिल में उतरे तो ज़ख्म-ए-दिल को देख लिया
दाग़-ए-दिल को थी कैसे-कैसे छुपाई मैंने...................
ज़िन्दगी इक पहेली ....................
ज़िन्दगी इक पहेली सी है
चार दिन की सहेली सी है
बात तेरी है मीठी शहद
याद तेरी करेली सी है
तेरा चेहरा है खिलता कँवल
बू - ए- गेसू चमेली सी है
संगमरमर है तेरा बदन
रूह तेरी हवेली सी है
आ समा "लुत्फी" के रूह में
तेरी हस्ती अकेली सी है......................
चार दिन की सहेली सी है
बात तेरी है मीठी शहद
याद तेरी करेली सी है
तेरा चेहरा है खिलता कँवल
बू - ए- गेसू चमेली सी है
संगमरमर है तेरा बदन
रूह तेरी हवेली सी है
आ समा "लुत्फी" के रूह में
तेरी हस्ती अकेली सी है......................
Friday, December 24, 2010
जब तू दुल्हन...................
रोज़ उनसे मुलाक़ात हो
दिल से दिल की कोई बात हो
छत पे हों दोनों तन्हाई में
चांदनी से भरी रात हो
जीत सकता हूँ दुनिया को मैं
हाथों में गर तेरा हाथ हो
जब तू दुल्हन, मैं दूल्हा बनूँ
चाँद-तारों की बारात हो
हर सू मंज़िल नज़र आएगी
जो सफ़र में तेरा साथ हो
"लुत्फी" जी इक वफ़ा के लिए
मर भी जाएँ तो क्या बात हो ........
दिल से दिल की कोई बात हो
छत पे हों दोनों तन्हाई में
चांदनी से भरी रात हो
जीत सकता हूँ दुनिया को मैं
हाथों में गर तेरा हाथ हो
जब तू दुल्हन, मैं दूल्हा बनूँ
चाँद-तारों की बारात हो
हर सू मंज़िल नज़र आएगी
जो सफ़र में तेरा साथ हो
"लुत्फी" जी इक वफ़ा के लिए
मर भी जाएँ तो क्या बात हो ........
राज़ को राज़ तक ही रहने दो
ख़ास हूँ ख़ास तक ही रहने दो
अपने दिल से जुदा न करना मुझे
पास हूँ पास तक ही रहने दो
ज़िन्दा सांसें हैं तेरी सांसों से
साँस को साँस तक ही रहने दो
बात बढ़ने से रिश्ते टूटेंगे
बात को बात तक ही रहने दो
टूटे दिल में तराने छेड़ो नहीं
सुर को अब साज़ तक ही रहने दो
हद से गर बढ़ गईं तो क्या होगा?
नाज़ को नाज़ तक ही रहने दो
तय करूँ क्यों मैं राह-ए=मंज़िल को
आस हूँ आस तक ही रहने दो
कल को सोचेंगे क्या करें "लुत्फी"
आज को आज तक ही रहने दो ..........
ख़ास हूँ ख़ास तक ही रहने दो
अपने दिल से जुदा न करना मुझे
पास हूँ पास तक ही रहने दो
ज़िन्दा सांसें हैं तेरी सांसों से
साँस को साँस तक ही रहने दो
बात बढ़ने से रिश्ते टूटेंगे
बात को बात तक ही रहने दो
टूटे दिल में तराने छेड़ो नहीं
सुर को अब साज़ तक ही रहने दो
हद से गर बढ़ गईं तो क्या होगा?
नाज़ को नाज़ तक ही रहने दो
तय करूँ क्यों मैं राह-ए=मंज़िल को
आस हूँ आस तक ही रहने दो
कल को सोचेंगे क्या करें "लुत्फी"
आज को आज तक ही रहने दो ..........
Tuesday, December 21, 2010
क्यों मै ग़ैरों का ऐतबार करूँ
जो भी करना है अपने-आप करूँ
जो ख़ता एक बार हो जाये
वो ख़ता क्यों मैं बार-बार करूँ
झूट के खंडरों से नफरत है
सच की शहनाइयों से प्यार करूँ
नींद आये न जब भी रातों में
माँ तेरी लोरियों को याद करूँ
पहले माँ की तमन्ना पूरी हो
जो भी करना है उसके बाद करूँ
वो जो नादान बन के बैठे हैं
उनकी हर इक ख़ता क्यों माफ़ करूँ
तेरी हर इक अदा है प्यारी सी
तेरी हर इक अदा को प्यार करूँ
अपनी सारी बुराई दो करके
अपनी अच्छाइयों को चार करूँ
दिल मेरा जिसको न गवाही दे
काम वो क्यों ऐ मेरे यार करूँ
मै भी ऊँगली कटा के कुछ दिन में
ख़ुद को जन्गबाज़ों में शुमार करूँ
ख़्वाब में भी जो सपने पूरे न हों
वैसे सपनों की मै न चाह करूँ
जो भी करना है अपने-आप करूँ
जो ख़ता एक बार हो जाये
वो ख़ता क्यों मैं बार-बार करूँ
झूट के खंडरों से नफरत है
सच की शहनाइयों से प्यार करूँ
नींद आये न जब भी रातों में
माँ तेरी लोरियों को याद करूँ
पहले माँ की तमन्ना पूरी हो
जो भी करना है उसके बाद करूँ
वो जो नादान बन के बैठे हैं
उनकी हर इक ख़ता क्यों माफ़ करूँ
तेरी हर इक अदा है प्यारी सी
तेरी हर इक अदा को प्यार करूँ
अपनी सारी बुराई दो करके
अपनी अच्छाइयों को चार करूँ
दिल मेरा जिसको न गवाही दे
काम वो क्यों ऐ मेरे यार करूँ
मै भी ऊँगली कटा के कुछ दिन में
ख़ुद को जन्गबाज़ों में शुमार करूँ
ख़्वाब में भी जो सपने पूरे न हों
वैसे सपनों की मै न चाह करूँ
Thursday, December 9, 2010
दिल लगाना ज़रा सोचके
चोट खाना ज़रा सोचके
ना खुदा हूँ ,न हूँ देवता
सर झुकाना ज़रा सोचके
दम निकल जायेगा दर्द से
दिल दुखाना ज़रा सोचके
ग़म में मर जाऊंगा मै सनम
दूर जाना ज़रा सोचके
उलटे तुम को न रोना पड़े
आज़माना ज़रा सोचके
अश्कों से दोस्ती तोड़कर
मुस्कुराना ज़रा सोचके
बाद मुद्दत के सोया हूँ मैं
तुम जगाना ज़रा सोचके
लूँगा बदला मैं हर ज़ख़्म का
आज आना ज़रा सोचके
मुझसा आशिक़ मिलेगा नहीं
मुंह छुपाना ज़रा सोचके
सुन के रोने लगेगी फ़ज़ा
लुत्फी गाना ज़रा सोचके.....
चोट खाना ज़रा सोचके
ना खुदा हूँ ,न हूँ देवता
सर झुकाना ज़रा सोचके
दम निकल जायेगा दर्द से
दिल दुखाना ज़रा सोचके
ग़म में मर जाऊंगा मै सनम
दूर जाना ज़रा सोचके
उलटे तुम को न रोना पड़े
आज़माना ज़रा सोचके
अश्कों से दोस्ती तोड़कर
मुस्कुराना ज़रा सोचके
बाद मुद्दत के सोया हूँ मैं
तुम जगाना ज़रा सोचके
लूँगा बदला मैं हर ज़ख़्म का
आज आना ज़रा सोचके
मुझसा आशिक़ मिलेगा नहीं
मुंह छुपाना ज़रा सोचके
सुन के रोने लगेगी फ़ज़ा
लुत्फी गाना ज़रा सोचके.....
Monday, December 6, 2010
मोतियों से तुम्हें.................
याद रखना,क़सम से आऊंगा
प्यार के वादे को निभाऊंगा
इन परिंदों से ना ख़फा होना
मै फलक पर तुझे ले जाऊंगा
भूल कर भूल तुम नहीं सकते
पाठ उल्फत का यूँ पढ़ाऊंगा
मुझसे हो आशना तेरी हस्ती
तेरी सांसों में यूँ समाऊंगा
दिल को मज़बूत तुम ज़रा कर लो
ग़म-ए-हस्ती को मैं सुनाऊंगा
बाद मरने के मुझको छाया मिले
पौधा छोटा सा इक लगाऊंगा
सोने-चांदी की तू ना परवा कर
मोतियों से तुम्हें सजाऊंगा
आज नाशाद हैं ये साज़ तो क्या
याद में तेरी गुनगुनाऊंगा
दिल से खुद अपने ही तु पूछ ज़रा
कैसे तुझको मैं भूल पाऊंगा
"लुत्फ़ी" जी गर कभी मज़ाक़ किया
लौट कर मैं कभी ना आऊंगा.........................
प्यार के वादे को निभाऊंगा
इन परिंदों से ना ख़फा होना
मै फलक पर तुझे ले जाऊंगा
भूल कर भूल तुम नहीं सकते
पाठ उल्फत का यूँ पढ़ाऊंगा
मुझसे हो आशना तेरी हस्ती
तेरी सांसों में यूँ समाऊंगा
दिल को मज़बूत तुम ज़रा कर लो
ग़म-ए-हस्ती को मैं सुनाऊंगा
बाद मरने के मुझको छाया मिले
पौधा छोटा सा इक लगाऊंगा
सोने-चांदी की तू ना परवा कर
मोतियों से तुम्हें सजाऊंगा
आज नाशाद हैं ये साज़ तो क्या
याद में तेरी गुनगुनाऊंगा
दिल से खुद अपने ही तु पूछ ज़रा
कैसे तुझको मैं भूल पाऊंगा
"लुत्फ़ी" जी गर कभी मज़ाक़ किया
लौट कर मैं कभी ना आऊंगा.........................
Thursday, November 25, 2010
DAHSHATON KA ZAMANA HAI...........................
दहशतों का ज़माना है चारों तरफ
मौत का अब घराना है चारों तरफ
घर में भी डर सा लगने लगा है मुझे
ज़ालिमों का निशाना है चारों तरफ
दिलों में है मातम की आहट सी अब
ग़म के बादल का छाना है चारों तरफ
कोई नग़मा मोहब्बत का गाता नहीं
बम ही बम का फ़साना है चारों तरफ
खंडरों को है आबाद करना तुझे
लुत्फी जन्नत बसाना है चारों तरफ..................................
मौत का अब घराना है चारों तरफ
घर में भी डर सा लगने लगा है मुझे
ज़ालिमों का निशाना है चारों तरफ
दिलों में है मातम की आहट सी अब
ग़म के बादल का छाना है चारों तरफ
कोई नग़मा मोहब्बत का गाता नहीं
बम ही बम का फ़साना है चारों तरफ
खंडरों को है आबाद करना तुझे
लुत्फी जन्नत बसाना है चारों तरफ..................................
Monday, November 15, 2010
MUJHKO LAGTE HO AB TUM KHUDA KI TARAH....................................
दिल में आये हो तुम दिलरुबा की तरह
मुझको लगते हो तुम अब ख़ुदा की तरह
उम्र भर बस तुझी से मैं बातें करूँ
तेरी हर बात है इक दुआ की तरह
इन अदाओं पे मिटने को करता है जी
हर अदा है तेरी खुश अदा की तरह
जब से मुझसे जुदा मेरा हमदम हुआ
शाम कटती है अब बेमज़ा की तरह
तेरी यादों का मौसम सुहाना लगे
तेरी यादें हैं दिलकश फ़ज़ा की तरह
इसके चलने से राहत मिले हर जगह
लुत्फी आया है जग में हवा की तरह.................................................
मुझको लगते हो तुम अब ख़ुदा की तरह
उम्र भर बस तुझी से मैं बातें करूँ
तेरी हर बात है इक दुआ की तरह
इन अदाओं पे मिटने को करता है जी
हर अदा है तेरी खुश अदा की तरह
जब से मुझसे जुदा मेरा हमदम हुआ
शाम कटती है अब बेमज़ा की तरह
तेरी यादों का मौसम सुहाना लगे
तेरी यादें हैं दिलकश फ़ज़ा की तरह
इसके चलने से राहत मिले हर जगह
लुत्फी आया है जग में हवा की तरह.................................................
zindgi ban gai hai zahar...............
हुई है सबों को ख़बर धीरे-धीरे
दुआ कर रही है असर धीरे-धीरे
ये दिल-जाँ की दौलत जो है मेरे पास
लुटाऊंगा तुम पे मगर धीरे-धीरे
है हर सू मिलावट कि आब ओ हवा
ज़िन्दगी बन गई है ज़हर धीरे-धीरे
अँधेरा मिटेगा बहुत हो चुका अब
रौशनी की चलेगी नहर धीरे-धीरे
ज़माने में कैसी ये आंधी चली है
बने देखो गाँव शहर धीरे-धीरे
है इस्लाह से फायदा ही मेरे दोस्त
अमल कीजिये आप अगर धीरे-धीरे
कमर को कसो हश्र पास आ रहा है
कट जाएगी ये सफ़र धीरे-धीरे
जो आवाज़ तेरी नज़र आ गई थी
गए थे वहीं पे ठहर धीरे-धीरे
वो हिज्र कि रात लम्बी थी कितनी
गई स्याह शब हुई सेहर धीरे-धीरे
चाहे कितने ही मिल्लत के हों लोग लेकिन
करेंगे यहीं पे बसर धीरे-धीरे
काफिरों कि तरह हो न मायूस लुत्फी
पड़ेगा ख़ुदा का क़हर धीरे-धीरे...............................................................
दुआ कर रही है असर धीरे-धीरे
ये दिल-जाँ की दौलत जो है मेरे पास
लुटाऊंगा तुम पे मगर धीरे-धीरे
है हर सू मिलावट कि आब ओ हवा
ज़िन्दगी बन गई है ज़हर धीरे-धीरे
अँधेरा मिटेगा बहुत हो चुका अब
रौशनी की चलेगी नहर धीरे-धीरे
ज़माने में कैसी ये आंधी चली है
बने देखो गाँव शहर धीरे-धीरे
है इस्लाह से फायदा ही मेरे दोस्त
अमल कीजिये आप अगर धीरे-धीरे
कमर को कसो हश्र पास आ रहा है
कट जाएगी ये सफ़र धीरे-धीरे
जो आवाज़ तेरी नज़र आ गई थी
गए थे वहीं पे ठहर धीरे-धीरे
वो हिज्र कि रात लम्बी थी कितनी
गई स्याह शब हुई सेहर धीरे-धीरे
चाहे कितने ही मिल्लत के हों लोग लेकिन
करेंगे यहीं पे बसर धीरे-धीरे
काफिरों कि तरह हो न मायूस लुत्फी
पड़ेगा ख़ुदा का क़हर धीरे-धीरे...............................................................
Thursday, October 14, 2010
SHER HO SHER KA.......................
दिल की धड़कन का ऐतबार करो
हम तुम्हारे हैं,हम से प्यार करो
ग़लतियाँ आदमी से होती हैं
हर क़दम खुद को होशियार करो
तुम ग़रीबों पे ज़ुल्म करते हो!
शेर हो, शेर का शिकार करो
मेरा दामन है दाग़दार बहुत
बेगुनाहों में ना शुमार करो
बावफा जो तुम्हें लगें लुत्फी
हश्र तक उनका इंतज़ार करो.
हम तुम्हारे हैं,हम से प्यार करो
ग़लतियाँ आदमी से होती हैं
हर क़दम खुद को होशियार करो
तुम ग़रीबों पे ज़ुल्म करते हो!
शेर हो, शेर का शिकार करो
मेरा दामन है दाग़दार बहुत
बेगुनाहों में ना शुमार करो
बावफा जो तुम्हें लगें लुत्फी
हश्र तक उनका इंतज़ार करो.
.
Thursday, October 7, 2010
kyon beet gaye wo..............
क्यों बीत गए वो दिन मस्ती के,वो खेलने के वो हंसने के
अब आते हैं याद मुझे बचपन के, साथी मेरे वो पढ़ने के.
क्या दिन थे सुहाने खुशियों के,ख्वाबों के हंसी रंगरलियों के
घर में सभी से डरने के और सब के दिलों में रहने के.
क्यों बीत गए वो .........................................................
ग़म कि बदली से दूर था मैं, अपने ही धुन में चूर था मै
वो दिन थे सबों से लड़ने के और माँ कि गोद में सोने के.
क्यों बीत गए वो .........................................................
मेले में खिलौनों को तकना, ठेले पे जलेबी के रुकना
पूरे मेले को खरीदने के वो दिन थे तितली पकड़ने के.
क्यों बीत गए वो ........................................................
थे अपने मज़े वो रूठने के, न मानना सबके मानाने पे
हर बात पे ही ज़िद करने के वो दिन थे शरारत करने के
क्यों बीत गए वो .....................................................
बाबा के काँधों पे चढ़ने के और चढ़ के चढ़े रह जाने के
चलते- चलते गिर जाने के वो दिन थे गिरने संभलने के
क्यों बीत गए वो ..................................................
या रब वो दिन फिर से आये,हम सब के दिलों को फिर भाएं
हम राजा थे अपने मन के वो दिन थे शासन करने के
क्यों बीत गए वो दिन मस्ती के,वो खेलने के वो हंसने के
अब आते हैं याद मुझे बचपन के साथी मेरे वो पढ़ने के..................................
अब आते हैं याद मुझे बचपन के, साथी मेरे वो पढ़ने के.
क्या दिन थे सुहाने खुशियों के,ख्वाबों के हंसी रंगरलियों के
घर में सभी से डरने के और सब के दिलों में रहने के.
क्यों बीत गए वो .........................................................
ग़म कि बदली से दूर था मैं, अपने ही धुन में चूर था मै
वो दिन थे सबों से लड़ने के और माँ कि गोद में सोने के.
क्यों बीत गए वो .........................................................
मेले में खिलौनों को तकना, ठेले पे जलेबी के रुकना
पूरे मेले को खरीदने के वो दिन थे तितली पकड़ने के.
क्यों बीत गए वो ........................................................
थे अपने मज़े वो रूठने के, न मानना सबके मानाने पे
हर बात पे ही ज़िद करने के वो दिन थे शरारत करने के
क्यों बीत गए वो .....................................................
बाबा के काँधों पे चढ़ने के और चढ़ के चढ़े रह जाने के
चलते
क्यों बीत गए वो ..................................................
या रब वो दिन फिर से आये,हम सब के दिलों को फिर भाएं
हम राजा थे अपने मन के वो दिन थे शासन करने के
क्यों बीत गए वो दिन मस्ती के,वो खेलने के वो हंसने के
अब आते हैं याद मुझे बचपन के साथी मेरे वो पढ़ने के..................................
Wednesday, September 29, 2010
tujh diwani ko...........
इस कहानी को क्या नाम दूँ
मैं जवानी को क्या नाम दूँ
गर हसीं हो तो कह दूँ कँवल
बदगुमानी को क्या नाम दूँ
धुप लगती नहीं जेठ में
रुत सुहानी को क्या नाम दूँ
छुप के मिलते थे जिस छत पे उस
छत पुरानी को क्या नाम दूँ
नाम दिवाने का लुत्फी है
तुझ दिवानी को क्या नाम दूँ.
मैं जवानी को क्या नाम दूँ
गर हसीं हो तो कह दूँ कँवल
बदगुमानी को क्या नाम दूँ
धुप लगती नहीं जेठ में
रुत सुहानी को क्या नाम दूँ
छुप के मिलते थे जिस छत पे उस
छत पुरानी को क्या नाम दूँ
नाम दिवाने का लुत्फी है
तुझ दिवानी को क्या नाम दूँ.
phir se bachpan...........
क्यों तेरी याद आ रही है मुझे
काहे इतना सता रही है मुझे
तेरे तन मन में बस गया हूँ मैं
तेरी हर सांस गा रही है मुझे
जब भी सोता हूँ ऐसा लगता है
याद तेरी जगा रही है मुझे
कैसे अंगड़ाई लेके जागी हो
नसीम-सहरी बता रही है मुझे
या खुदा कर दे अपनी मर्ज़ी अता
फिर से बचपन बुला रही है मुझे
माँ तेरी ही नज़र है अब तक जो
हर बला से बचा रही है मुझे
ग़म के जितने भी रंग हैं लुत्फी
जिंदगी सब दिखा रही है मुझे.
काहे इतना सता रही है मुझे
तेरे तन मन में बस गया हूँ मैं
तेरी हर सांस गा रही है मुझे
जब भी सोता हूँ ऐसा लगता है
याद तेरी जगा रही है मुझे
कैसे अंगड़ाई लेके जागी हो
नसीम-सहरी बता रही है मुझे
या खुदा कर दे अपनी मर्ज़ी अता
फिर से बचपन बुला रही है मुझे
माँ तेरी ही नज़र है अब तक जो
हर बला से बचा रही है मुझे
ग़म के जितने भी रंग हैं लुत्फी
जिंदगी सब दिखा रही है मुझे.
Thursday, September 23, 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)