Monday, November 15, 2010

zindgi ban gai hai zahar...............

हुई है सबों को ख़बर धीरे-धीरे
दुआ कर रही है असर धीरे-धीरे


ये दिल-जाँ की दौलत जो है मेरे पास
लुटाऊंगा तुम पे मगर धीरे-धीरे


है हर सू मिलावट कि आब ओ हवा
ज़िन्दगी बन गई है ज़हर धीरे-धीरे


अँधेरा मिटेगा बहुत हो चुका अब
रौशनी की चलेगी नहर धीरे-धीरे


ज़माने में कैसी ये आंधी चली है
बने देखो गाँव शहर धीरे-धीरे


है इस्लाह से फायदा ही मेरे दोस्त
अमल कीजिये आप अगर धीरे-धीरे


कमर को कसो हश्र पास आ रहा है
कट जाएगी ये सफ़र धीरे-धीरे


जो आवाज़ तेरी नज़र आ गई थी
गए थे वहीं पे ठहर धीरे-धीरे


वो हिज्र कि रात लम्बी थी कितनी
गई स्याह शब हुई सेहर धीरे-धीरे


चाहे कितने ही मिल्लत के हों लोग लेकिन
करेंगे यहीं पे बसर धीरे-धीरे


काफिरों कि तरह हो न मायूस लुत्फी
पड़ेगा ख़ुदा का क़हर धीरे-धीरे............................................................... 

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