Wednesday, September 29, 2010

phir se bachpan...........

क्यों तेरी याद आ रही है मुझे
काहे इतना सता रही है मुझे
तेरे तन मन में बस गया हूँ मैं
तेरी हर सांस गा रही है मुझे 
जब भी सोता हूँ ऐसा लगता है 
याद तेरी जगा रही है मुझे
कैसे अंगड़ाई लेके जागी हो 
नसीम-सहरी बता रही है मुझे
या खुदा कर दे अपनी मर्ज़ी अता 
फिर से बचपन बुला रही है मुझे
माँ तेरी ही नज़र है अब तक जो
हर बला से बचा रही है मुझे
ग़म के जितने भी रंग हैं लुत्फी 
जिंदगी सब दिखा रही है मुझे.

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