Thursday, October 7, 2010

kyon beet gaye wo..............

क्यों बीत गए वो दिन मस्ती के,वो खेलने के वो हंसने के
अब आते हैं याद मुझे बचपन के, साथी मेरे वो पढ़ने के.


      क्या दिन थे सुहाने खुशियों के,ख्वाबों के हंसी रंगरलियों के
       घर में सभी से डरने के और सब के दिलों में रहने के.
       क्यों बीत गए वो .........................................................


      ग़म कि बदली से दूर था मैं, अपने ही धुन में चूर था मै
      वो दिन थे सबों से लड़ने के और माँ कि गोद में सोने के.
      क्यों बीत गए वो .........................................................


       मेले में खिलौनों को तकना, ठेले पे जलेबी के रुकना
       पूरे मेले को खरीदने के वो दिन थे तितली पकड़ने के.
       क्यों बीत गए वो ........................................................


       थे अपने मज़े वो रूठने के, न मानना सबके मानाने पे
       हर बात पे ही ज़िद करने के वो दिन थे शरारत करने के
       क्यों बीत गए वो .....................................................


       बाबा के काँधों पे चढ़ने के और चढ़ के चढ़े रह जाने के
       चलते- चलते गिर जाने के वो दिन थे गिरने संभलने के
        क्यों बीत गए वो ..................................................
       
        या रब वो दिन फिर से आये,हम सब के दिलों को फिर भाएं
        हम राजा थे अपने मन के वो दिन थे शासन करने के
        क्यों बीत गए वो दिन मस्ती के,वो खेलने के वो हंसने के
        अब आते हैं याद मुझे बचपन के साथी मेरे वो पढ़ने के..................................

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