दहशतों का ज़माना है चारों तरफ
मौत का अब घराना है चारों तरफ
घर में भी डर सा लगने लगा है मुझे
ज़ालिमों का निशाना है चारों तरफ
दिलों में है मातम की आहट सी अब
ग़म के बादल का छाना है चारों तरफ
कोई नग़मा मोहब्बत का गाता नहीं
बम ही बम का फ़साना है चारों तरफ
खंडरों को है आबाद करना तुझे
लुत्फी जन्नत बसाना है चारों तरफ..................................
Thursday, November 25, 2010
Monday, November 15, 2010
MUJHKO LAGTE HO AB TUM KHUDA KI TARAH....................................
दिल में आये हो तुम दिलरुबा की तरह
मुझको लगते हो तुम अब ख़ुदा की तरह
उम्र भर बस तुझी से मैं बातें करूँ
तेरी हर बात है इक दुआ की तरह
इन अदाओं पे मिटने को करता है जी
हर अदा है तेरी खुश अदा की तरह
जब से मुझसे जुदा मेरा हमदम हुआ
शाम कटती है अब बेमज़ा की तरह
तेरी यादों का मौसम सुहाना लगे
तेरी यादें हैं दिलकश फ़ज़ा की तरह
इसके चलने से राहत मिले हर जगह
लुत्फी आया है जग में हवा की तरह.................................................
मुझको लगते हो तुम अब ख़ुदा की तरह
उम्र भर बस तुझी से मैं बातें करूँ
तेरी हर बात है इक दुआ की तरह
इन अदाओं पे मिटने को करता है जी
हर अदा है तेरी खुश अदा की तरह
जब से मुझसे जुदा मेरा हमदम हुआ
शाम कटती है अब बेमज़ा की तरह
तेरी यादों का मौसम सुहाना लगे
तेरी यादें हैं दिलकश फ़ज़ा की तरह
इसके चलने से राहत मिले हर जगह
लुत्फी आया है जग में हवा की तरह.................................................
zindgi ban gai hai zahar...............
हुई है सबों को ख़बर धीरे-धीरे
दुआ कर रही है असर धीरे-धीरे
ये दिल-जाँ की दौलत जो है मेरे पास
लुटाऊंगा तुम पे मगर धीरे-धीरे
है हर सू मिलावट कि आब ओ हवा
ज़िन्दगी बन गई है ज़हर धीरे-धीरे
अँधेरा मिटेगा बहुत हो चुका अब
रौशनी की चलेगी नहर धीरे-धीरे
ज़माने में कैसी ये आंधी चली है
बने देखो गाँव शहर धीरे-धीरे
है इस्लाह से फायदा ही मेरे दोस्त
अमल कीजिये आप अगर धीरे-धीरे
कमर को कसो हश्र पास आ रहा है
कट जाएगी ये सफ़र धीरे-धीरे
जो आवाज़ तेरी नज़र आ गई थी
गए थे वहीं पे ठहर धीरे-धीरे
वो हिज्र कि रात लम्बी थी कितनी
गई स्याह शब हुई सेहर धीरे-धीरे
चाहे कितने ही मिल्लत के हों लोग लेकिन
करेंगे यहीं पे बसर धीरे-धीरे
काफिरों कि तरह हो न मायूस लुत्फी
पड़ेगा ख़ुदा का क़हर धीरे-धीरे...............................................................
दुआ कर रही है असर धीरे-धीरे
ये दिल-जाँ की दौलत जो है मेरे पास
लुटाऊंगा तुम पे मगर धीरे-धीरे
है हर सू मिलावट कि आब ओ हवा
ज़िन्दगी बन गई है ज़हर धीरे-धीरे
अँधेरा मिटेगा बहुत हो चुका अब
रौशनी की चलेगी नहर धीरे-धीरे
ज़माने में कैसी ये आंधी चली है
बने देखो गाँव शहर धीरे-धीरे
है इस्लाह से फायदा ही मेरे दोस्त
अमल कीजिये आप अगर धीरे-धीरे
कमर को कसो हश्र पास आ रहा है
कट जाएगी ये सफ़र धीरे-धीरे
जो आवाज़ तेरी नज़र आ गई थी
गए थे वहीं पे ठहर धीरे-धीरे
वो हिज्र कि रात लम्बी थी कितनी
गई स्याह शब हुई सेहर धीरे-धीरे
चाहे कितने ही मिल्लत के हों लोग लेकिन
करेंगे यहीं पे बसर धीरे-धीरे
काफिरों कि तरह हो न मायूस लुत्फी
पड़ेगा ख़ुदा का क़हर धीरे-धीरे...............................................................
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