Tuesday, December 21, 2010

क्यों मै ग़ैरों का ऐतबार करूँ
जो भी करना है अपने-आप करूँ


जो ख़ता एक बार हो जाये
वो ख़ता क्यों मैं बार-बार करूँ


झूट के खंडरों से नफरत है 
सच की शहनाइयों से प्यार करूँ


नींद आये न जब भी रातों में
माँ तेरी लोरियों को याद करूँ


पहले माँ की तमन्ना पूरी हो 
जो भी करना है उसके बाद करूँ


वो जो नादान बन के बैठे हैं
उनकी हर इक ख़ता क्यों माफ़ करूँ


तेरी हर इक अदा है प्यारी सी
तेरी हर इक अदा को प्यार करूँ


अपनी सारी बुराई दो करके
अपनी अच्छाइयों  को चार करूँ


दिल मेरा जिसको न गवाही दे
काम वो क्यों ऐ मेरे यार करूँ


मै भी ऊँगली कटा के कुछ दिन में
ख़ुद को जन्गबाज़ों में शुमार करूँ


ख़्वाब में भी जो सपने पूरे न हों
वैसे सपनों की मै न चाह करूँ


1 comments:

माधव( Madhav) said...

wah wah

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