Wednesday, January 5, 2011

दिल का दीपक जला दिया होता............................

हाल दिल का सुना दिया होता
मुझको अपना बना लिया होता

ईश्क़ में मैंने रोना जाना नहीं
तुमने मुझको रुला दिया होता

वस्ल में उनसे दुश्मनी कर ली
हिज्र का ग़म भुला दिया होता

फिर किसी पर कभी न मरते हम
राज़ दिल का बता दिया होता

मै भी होता जहाँ में सबसे जुदा
ध्यान मुझ पर ज़रा दिया होता

राह में बैठी थीं बलाएँ अगर
तुमने मुझको बुला लिया होता

रात काली थी और अँधेरी थी
साथ मुझको सुला लिया होता

मरते-मरते भी ज़िन्दा हो जाते
रुख़ से आँचल हटा लिया होता

"लुत्फी"परवाना बनके मर-मिटता
दिल का दीपक जला दिया होता............................

1 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

behtrin gzl ridhm,rdif qaafiya bhr mitr ka bhi bhut khub taalmel he mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan

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