Tuesday, December 27, 2011

वो तारे तोड़कर लाना हमें अच्छा नहीं लगता ............


किसी को बदगुमां कहना हमें अच्छा नहीं लगता
किसी के दिल को तड़पाना हमें अच्छा नहीं लगता

परी की पंखुड़ी सी तेरी बाँहों से बिछड़ जाना
वो ख्वाबों से तेरा जाना हमें अच्छा नहीं लगता 

तेरे रुख्सार पर नज़रें गड़ाना फिर हटा लेना
सबर कर-कर के रह जाना हमें अच्छा नहीं लगता

बिना तेरे हवाओं में वो रंगीनी नहीं आती
हसीं मौसम ये मस्ताना हमें अच्छा नहीं लगता

जो कह दे चाँद-तारों की अभी महफ़िल सजा दूँ मैं
वो तारे तोड़कर लाना हमें अच्छा नहीं लगता

ज़रा तू रूबरू हो ज़िन्दगी का जाम पी लूँ मैं
तेरा परदे में शर्माना हमें अच्छा नहीं लगता.......................

6 comments:

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

aapki na padhein to humein achha nahee lagtaa....

meri nayi post pe aapka swagat hai bhaijaan

Rachana said...

jo kah den ..............

bahut hi sunder shet hai
rachana

अर्चना तिवारी said...

bahut khoob janaab....

प्रेम सरोवर said...

छा गए गुरू । तोहार जवाब नईखे भाई जान। बहुत ही सुंदर प्रयास ।धन्यवाद ।

Ramakant Singh said...

ज़िन्दगी का फलसफा ही कुछ और है ज़नाब .
जो हर किसी को समझ आ जाये वो क्या जिंदगी है ..

aap bahut khubsurat likhate hain main thodaa
kachhaa hun .kami ko sajhaane ke liye aapaka aabhari .aapase milakar sukun milaa.

***Punam*** said...

बहुत सुंदर गजल....

बिना तारीफ किए जाना....हमें अच्छा नहीं लगता....!!

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