Friday, August 5, 2011

मैं हमेशा ही कहूँगा- बेवफा तू बेवफा .........................

सुन ज़रा ओ बेअदब,ओ बेशरम,ओ बेहया
तुझको पूजा की इबादत,फिर भी तूने की दग़ा

दिल की बस्ती को जलाना,जब तुम्हे मंज़ूर था
प्यार में दिल क़त्ल कर के,क्या मिला तुझको बता?

चाहे कितने ही वफ़ा के अब गवाहें पेश कर
मैं हमेशा ही कहूँगा- बेवफा तू बेवफा

ख़ुद ही आंकोगे अगर तुम तो पता चल जायेगा
मैं तेरी मंज़िल हूँ लेकिन तू मेरी मंज़िल कहाँ?

अब क्या जीना ज़िंदगी को ज़िंदगी भी बेवफा 
ऊम्र भर मरता रहूँगा ऐसी तूने दी दवा

क्यों हवाएं दे रहे हो? क्या मिलेगा अब तुम्हें?
जो शमा रौशन थी पहले बुझ चली है वो शमा

तेरी फितरत और अदाएं दोनों तीर-ओ-नेज़ हैं
दिल में चुभना तेरी फितरत,जानलेवा है अदा

अब अँधेरा मिट चुका है,साफ सब कुछ दिख रहा
पल में उतरा जो चढ़ा था सालों पहले से नशा

ईश्क़ में नाक़ामियों  का छोड़ जा ऐसा निशाँ
भूल कर भी प्यार करने से डरें दो दिल जवाँ


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