याद रखना,क़सम से आऊंगा
प्यार के वादे को निभाऊंगा
इन परिंदों से ना ख़फा होना
मै फलक पर तुझे ले जाऊंगा
भूल कर भूल तुम नहीं सकते
पाठ उल्फत का यूँ पढ़ाऊंगा
मुझसे हो आशना तेरी हस्ती
तेरी सांसों में यूँ समाऊंगा
दिल को मज़बूत तुम ज़रा कर लो
ग़म-ए-हस्ती को मैं सुनाऊंगा
बाद मरने के मुझको छाया मिले
पौधा छोटा सा इक लगाऊंगा
सोने-चांदी की तू ना परवा कर
मोतियों से तुम्हें सजाऊंगा
आज नाशाद हैं ये साज़ तो क्या
याद में तेरी गुनगुनाऊंगा
दिल से खुद अपने ही तु पूछ ज़रा
कैसे तुझको मैं भूल पाऊंगा
"लुत्फ़ी" जी गर कभी मज़ाक़ किया
लौट कर मैं कभी ना आऊंगा.........................
Monday, December 6, 2010
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