दहशतों का ज़माना है चारों तरफ
मौत का अब घराना है चारों तरफ
घर में भी डर सा लगने लगा है मुझे
ज़ालिमों का निशाना है चारों तरफ
दिलों में है मातम की आहट सी अब
ग़म के बादल का छाना है चारों तरफ
कोई नग़मा मोहब्बत का गाता नहीं
बम ही बम का फ़साना है चारों तरफ
खंडरों को है आबाद करना तुझे
लुत्फी जन्नत बसाना है चारों तरफ..................................
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1 comments:
बहुत अच्छी रचना.
शुभकामनाएं.
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कुछ ग़मों की दीये
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