क्यों कर मांगी थी मुहब्बत की दुहाई मैंने
आग ख़ुद अपने ही दिल में थी लगाई मैंने
सुब्ह ना चैन मिला, शाम को ना क़रार मिला
रात भर रोके थी वक़्त बिताई मैंने
याद आती है मिलन की वो पहली रात
हौले-हौले ही सही थी उनको सती मैंने
दिल में उतरे तो ज़ख्म-ए-दिल को देख लिया
दाग़-ए-दिल को थी कैसे-कैसे छुपाई मैंने...................
Wednesday, December 29, 2010
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