इस कहानी को क्या नाम दूँ
मैं जवानी को क्या नाम दूँ
गर हसीं हो तो कह दूँ कँवल
बदगुमानी को क्या नाम दूँ
धुप लगती नहीं जेठ में
रुत सुहानी को क्या नाम दूँ
छुप के मिलते थे जिस छत पे उस
छत पुरानी को क्या नाम दूँ
नाम दिवाने का लुत्फी है
तुझ दिवानी को क्या नाम दूँ.
Wednesday, September 29, 2010
phir se bachpan...........
क्यों तेरी याद आ रही है मुझे
काहे इतना सता रही है मुझे
तेरे तन मन में बस गया हूँ मैं
तेरी हर सांस गा रही है मुझे
जब भी सोता हूँ ऐसा लगता है
याद तेरी जगा रही है मुझे
कैसे अंगड़ाई लेके जागी हो
नसीम-सहरी बता रही है मुझे
या खुदा कर दे अपनी मर्ज़ी अता
फिर से बचपन बुला रही है मुझे
माँ तेरी ही नज़र है अब तक जो
हर बला से बचा रही है मुझे
ग़म के जितने भी रंग हैं लुत्फी
जिंदगी सब दिखा रही है मुझे.
काहे इतना सता रही है मुझे
तेरे तन मन में बस गया हूँ मैं
तेरी हर सांस गा रही है मुझे
जब भी सोता हूँ ऐसा लगता है
याद तेरी जगा रही है मुझे
कैसे अंगड़ाई लेके जागी हो
नसीम-सहरी बता रही है मुझे
या खुदा कर दे अपनी मर्ज़ी अता
फिर से बचपन बुला रही है मुझे
माँ तेरी ही नज़र है अब तक जो
हर बला से बचा रही है मुझे
ग़म के जितने भी रंग हैं लुत्फी
जिंदगी सब दिखा रही है मुझे.
Thursday, September 23, 2010
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