हुई है सबों को ख़बर धीरे-धीरे
दुआ कर रही है असर धीरे-धीरे
ये दिल-जाँ की दौलत जो है मेरे पास
लुटाऊंगा तुम पे मगर धीरे-धीरे
है हर सू मिलावट कि आब ओ हवा
ज़िन्दगी बन गई है ज़हर धीरे-धीरे
अँधेरा मिटेगा बहुत हो चुका अब
रौशनी की चलेगी नहर धीरे-धीरे
ज़माने में कैसी ये आंधी चली है
बने देखो गाँव शहर धीरे-धीरे
है इस्लाह से फायदा ही मेरे दोस्त
अमल कीजिये आप अगर धीरे-धीरे
कमर को कसो हश्र पास आ रहा है
कट जाएगी ये सफ़र धीरे-धीरे
जो आवाज़ तेरी नज़र आ गई थी
गए थे वहीं पे ठहर धीरे-धीरे
वो हिज्र कि रात लम्बी थी कितनी
गई स्याह शब हुई सेहर धीरे-धीरे
चाहे कितने ही मिल्लत के हों लोग लेकिन
करेंगे यहीं पे बसर धीरे-धीरे
काफिरों कि तरह हो न मायूस लुत्फी
पड़ेगा ख़ुदा का क़हर धीरे-धीरे...............................................................
Monday, November 15, 2010
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