Tuesday, February 8, 2011

न है ये प्यार तो क्या है?


समझ में आता नहीं मर्ज़-ए-लादवा क्या है?
कि बस हकीम का चलता नहीं दवा क्या है?

न छू सका तेरे लब को जो अपने होटों से
तुझे नज़र से पिया है तेरा बचा क्या है?

न है ये प्यार तो क्या है? इसे क्या कहते हैं?
शबों को जागते रहना तुही बता क्या है?

तेरे ही वास्ते दर-दर फिरा हूं आवारा
तुही बता दे सनम अब तेरी रज़ा क्या है?

मैं खोद सकता था परबत मुझे मिला पोखर
बस उनसे नज़रें निलाने की ये सज़ा क्या है?

तेरे बगैर मेरा जीना भी क्या जीना है?
मैं तुझपे खुद ही मिटा हूं,तेरी खता क्या है?

ऐ“लुत्फ़ी”क्यों है परिशां,सुकूं मिलेगा तुझे
तु उसकी सांसों में बस जा तुझे हुआ क्या है?.................... 

तुझसे ज़िन्दा हूँ मैं ज़िन्दगी


साथ छूटे ना महशर में भी
हम हों,तुम हो,न हो कोई भी

तेरी उँगली के हर पोर में
इक नयी ज़िन्दगी है बसी

साँसें मेरी हैं तेरी सनम
तुझसे ज़िन्दा हूँ मैं ज़िन्दगी

पूछ मत तेरी ज़ुल्फ़ों तले
कैसे जीता हूँ मैं दो घडी

कौन है साथ तेरे परी
मुझसे पूछा करें हैं सभी

खुद को आशिक कहें “लुत्फ़ी” जी
बोला करिये कभी तो सही !