समझ में आता नहीं मर्ज़-ए-लादवा क्या है?
कि बस हकीम का चलता नहीं दवा क्या है?
न छू सका तेरे लब को जो अपने होटों से
तुझे नज़र से पिया है तेरा बचा क्या है?
न है ये प्यार तो क्या है? इसे क्या कहते हैं?
शबों को जागते रहना तुही बता क्या है?
तेरे ही वास्ते दर-दर फिरा हूं आवारा
तुही बता दे सनम अब तेरी रज़ा क्या है?
मैं खोद सकता था परबत मुझे मिला पोखर
बस उनसे नज़रें निलाने की ये सज़ा क्या है?
तेरे बगैर मेरा जीना भी क्या जीना है?
मैं तुझपे खुद ही मिटा हूं,तेरी खता क्या है?
ऐ“लुत्फ़ी”क्यों है परिशां,सुकूं मिलेगा तुझे
तु उसकी सांसों में बस जा तुझे हुआ क्या है?....................