साथ छूटे ना महशर में भी
हम हों,तुम हो,न हो कोई भी
तेरी उँगली के हर पोर में
इक नयी ज़िन्दगी है बसी
साँसें मेरी हैं तेरी सनम
तुझसे ज़िन्दा हूँ मैं ज़िन्दगी
पूछ मत तेरी ज़ुल्फ़ों तले
कैसे जीता हूँ मैं दो घडी
कौन है साथ तेरे परी
मुझसे पूछा करें हैं सभी
खुद को आशिक कहें “लुत्फ़ी” जी
बोला करिये कभी तो सही !
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