वक़्त के साथ चलते रहो
रंग-ए-दुनिया में ढलते रहो
हिज्र में जल के देखा किया
वस्ल में भी तो जलते रहो
बुझना है मौत सा दोस्तो
जुगनुओं सा ही जलते रहो
गर रुकोगे तो रह जाओगे
साँस जब तक है चलते रहो
दुश्मनी ज़िंदा रखनी हो तो
दुश्मनों से भी मिलते रहो
ज़िन्दगी तो है काँटों भरा
फूल सा हंस के खिलते रहो
लौट कर वक़्त आता नहीं
फिर भले हाथ मलते रहो...............................