Sunday, January 30, 2011

दुनिया में बुजुर्गों की दुआ तुम भी लो सनम..................

बारिश में भीगने का मज़ा तुम भी लो सनम
खोलकर दर-ए-दिल ठंडी हवा तुम भी लो सनम


सीरप मैं पी रहा हूँ,अश्कों का प्यार में
इस रोग से बचने की दवा तुम भी लो सनम


जिस दिल में दर्द ना हो, वहां प्यार भी नहीं
दिल दर्द से भरे जो गिज़ा तुम भी लो सनम


न नाम-ओ-निशान हो जहाँ अँधेरे का कहीं 
सूरज के न ढलने का पता तुम भी लो सनम


महशर में भी निजात मिलेगी हंसी-ख़ुशी
दुनिया में बुजुर्गों की दुआ तुम भी लो सनम


"लुत्फ़ी"को होश ना रहा दुनिया-जहान का
लाये न होश जो,वो दवा तुम भी लो सनम.............







दुवाओं में वो ताक़त है,फरिश्तों को झुका लें हम...........

जवाँ हूँ मैं,जवाँ हो तुम,जवाँ दिल को संभालें हम 
कि होगा क्या?किसे है पता?कोई भी ग़म न पालें हम


न अरमान हैं,न ही कोई तमन्ना,न ही कोई ख्वाहिश है
कि दिल में जो छुपी है इक शरारत को जगा लें हम


वफ़ादार रहना,न होना ख़फा और न बनना कभी बेवफ़ा
वफ़ा के इन सितारों से ज़िन्दगी को सजा लें हम

हम एक हैं,साथ रहना है हमको,ज़रा सब्र कर लो सनम
चन्द दिन की जुदाई को गले से अब लगा लें हम


ख़ुशी से रहेंगे सभी लोग मिलके न होगा कोई भी दुखी
ख़ुशी बरसेगी दुनियां में कि रोतों को हंसा लें हम


है संगीत हर ज़िन्दगी की ज़रूरत,ख़ुशी का ख़ज़ाना है
मिलेगा अब सुकूं दिल को झूम के आ गा लें हम


मुश्किलें होंगी आसाँ,बला दूर होगी,जो दिल से दुआ कीजिये
दुवाओं में वो ताक़त है,फरिश्तों को झुका लें हम


मोहब्बत का मौसम सुहाना लगे है,सुहानी है इसकी फ़ज़ा
फ़ज़ा के इन हसीं दिलकश नज़ारों को चुरा लें हम...............

Wednesday, January 26, 2011

हाल-ए-दिल जो कहे वो क़लम धुंडते हैं.......................

तुझ सा हसीं इक सनम धुंडते  हैं
तुम्हारा ही नक्श-ए-क़दम धुंडते हैं

बे ज़ुबां हो गया हुस्न को देख कर 
हाल-ए-दिल जो कहे वो क़लम धुंडते हैं

तेरी ज़ुल्फ़ें हैं लटकी घटा की तरह
प्यासे भी अब घटाओं को काम धुंडते हैं

दूर दुनिया से हम दोनों रहने लगे
बाग़-ए-मस्ती को दुनिया के ग़म धुंडते हैं

प्यार करते रहे,दर्द बढ़ता रहा
"लुत्फ़ी"को अब तो उनके सितम धुंडते हैं...........

बस क़यामत है उसकी हंसी.............

ऐ हवा तू क्यों दिखती नहीं?
चलती रहती है,रुकती नहीं

कव्वे बोले हैं क्या कांव-कांव
कुछ समझ में ये अपनी नहीं


बस क़यामत है उसकी हंसी
जिद पे आये तो रुकती नहीं


उसकी सीरत है सबसे अलग
जो किसी में भी मिलती नहीं


बेवफा मैं उसे क्यों कहूँ
ख़ुद वफ़ादार मैं ही नहीं.............
 

एक जंगल में दो शेर रहते नहीं.................

बाद मरने के कुछ काम ऐसा करो
भूत बन कर सभी को डराया करो

प्यार करना कोई जुर्म जानम नहीं
प्यार अब्बा से लेकिन छुपाया करो

एक जंगल में दो शेर रहते नहीं
इसलिये बज़्म में तुम न आया करो

मैं कैसा हूँ, कैसे पता ये चले
कुछ उधारी मुझे देके देखा करो

ऊम्र लम्बी हो कैसे? ये नुस्ख़ा सुनो
"लुत्फ़ी"बस ज़ुल्फ़-ए-जानां से खेला करो..............

अब कहीं चैन मिलता नहीं................

तुझसे आँखें यूँही मोड़ के
जाऊंगा मैं कहाँ छोड़ के?

रुत सुनहला हो जब तू चले
रेशमी ओढ़नी ओढ़ के

दिल में पाई है तेरे जगह
तुझसे रिश्ता नया जोड़ के

अब कहीं चैन मिलता नहीं
एक बस,दर तेरा छोड़ के

तेरे पहलू में आया हूँ मैं
नाता दुनिया से इस तोड़ के

"लुत्फ़ी"ख़ुश है तेरे बज़्म में
ग़म की महफ़िल से मुंह मोड़ के..........

देखता है जो बच्चे को रोते हुए .................

देख कर आपको दिल मचल जाता है 
आपकी यादों से दिल बहल जाता है

देख ले तेरी सूरत को जो बादा कश 
गिरते-गिरते नशे में सम्भल जाता है

लाख चाहें, तो भी, भूल पाते नहीं 
नाम तेरा जिगर से निकल आता है

जब कोई बात दिल में खटक जाती है
अश्क़ आँखों से आख़िर उछल आता है

लौटकर फिर कभी पास आता नहीं
वक़्त जब हाथ से यूँ निकल जाता है

देखता है जो बच्चे को रोते हुए 
चाहे पत्थर हो दिल,वो पिघल जाता है

प्यार का जब नशा चढ़ता है आँखों पर 
गिरते-पड़ते भी"लुत्फ़ी"सम्भल जाता है...................... 

प्यार सच्चा हो तो"लुत्फ़ी"जी...........

मेरा दम ही निकल जाएगा
तू कहीं गर बदल जाएगा


प्यार हद से बढाओगे तो 
संगदिल भी पिघल जाएगा


मेरी यादों में खो कर तो देख
तेरा दिल भी बहल जाएगा


राह-ए-उल्फत में जल्दी न कर
पग लुढकते फिसल जाएगा


हिज्र है हश्र मेरे लिए
तेरा दिल तो सम्भल जाएगा


ख़्वाब में गर तू आएगा तो
मिलने को दिल मचल जाएगा


प्यार सच्चा हो तो"लुत्फ़ी"जी
आग को भी निगल जाएगा...........

गर कहे तो ज़मीं चीर दूँ....................

सामने है मेरे,  मेरा पी
देख उसको लगे मेरा जी 

साथ जीना है,मरना भी है
आज ये है क़सम हमने ली


तेरा चेहरा लगे आइना
तेरी आँखें लगें झील सी


अपनी कोशिश से अंज़ाम कर
काम जो है शुरू तूने की


गर कहे तो ज़मीं चीर दूँ
ऐसे गुमसुम है तू काहे री

तू ही है ज़ख्म-ए-दिल की दवा
ज़ख्म की हर वजह है तू ही..........
 

जो चुभे बस वही ख़ार है..................

प्यार का नाम बस प्यार है
दर्द-ए-दिल की दवा यार है

गुल से नाज़ुक है कुछ भी नहीं
जो चुभे बस वही ख़ार है

जंग-ए-उल्फत में तेरे बगैर
जीता भी गर,तो भी हार है

दम तो निकलेगा ताउम्र अब
बाँके नैनों का ये वार है

चाह कर भी न होगा मिलन
मैं पार इस हूँ,तू उस पार है

"लुत्फ़ी"मैदां से भागा नहीं
रन से भागा है जो नार है................

"लुत्फ़ी" है प्यार का देवता.....................

दिल  के दुखने पे रोता नहीं
रातों को अब मैं सोता नहीं
सोचता हूँ, न सोचूं तुझे
ये भी अब मुझसे होता नहीं
दिल के लॉकर में रखता हूँ मैं
तेरी यादों को खोता नहीं

ज़ख्म सहना है आदत सी अब
दर्द अब मुझको होता नहीं
दिल दुखे न मेरा इसलिए
कोई अरमान ढोता नहीं
ज़ख्म भर ना सकें इसलिए
दाग़-ए-दिल को मैं धोता नहीं
"लुत्फ़ी" है प्यार का देवता
बीज नफ़रत के बोता नहीं......

Saturday, January 8, 2011

अब न लागे ख़ुदा से भी डर............

सब्र भी अब करूँ किस तरह
तू बता दे जियूं किस तरह


बिन तेरे जीना मुश्किल है अब
ये बता दे मरूं किस तरह


अब न लागे ख़ुदा से भी डर
तू बता दे डरूँ किस तरह


प्यार करना बड़ा जुर्म है
जुर्म से इस बचूं किस तरह


ईश्क़ में दिल हुआ ला पता
हाल-ए-दिल मैं कहूँ किस तरह


दर्द तूने दिया ला दवा
दर्द-ए--दिल अब सहूँ किस तरह


तुमने होटों को वा कर दिये
जाम-ए-लब मैं पियूँ किस तरह


"लुत्फ़ी"जब ना बचा ईश्क़ से
ईश्क़ से मैं बचूं किस तरह..............................

किसी की गर्म सी सांसें तुझे बुलाती हैं...........

कभी-कभी तेरी यादें बहुत रुलाती हैं
जो हों अकेले कहीं तो मुझे सताती हैं

मैं एक बात कहूँ गर तुझे बुरा ना लगे
वो ग़ैर से तेरी बातें बहुत जलाती हैं

ये ज़ुल्फ़ें उड़के बिखरती हैं जो तेरे रुख पर
इक आग सा मेरे दिल में कहीं लगाती हैं

जो तेरे दिल के हंसी बाग़ की दो हैं कलियाँ
वो तेरी यादों के झुरमुट से कुछ बताती हैं

ऐ"लुत्फी"बैठा है,क्यों भूल के हंसी मंज़र?
किसी की गर्म सी सांसें तुझे बुलाती हैं...........

ग़ुस्से में होंट सिलना तेरा.............

सब से छुप-छुप के मिलना तेरा
फूल सा हंस के खिलना तेरा

जो खुश हों तो बातें बहुत
ग़ुस्से में होंट सिलना तेरा

जब भी मिलना अकेले कहीं
डर से दुनिया के हिलना तेरा

कनखियों से मुझे देख कर
सब्ज़ियों को वो छिलना तेरा

अच्छा लगता है"लुत्फी"को अब
रोज़ ख्वाबों में मिलना तेरा.......................

तुम दिल हो, जाँ हो मेरे,सांसों में समा जाओ.............

आओ तुम पास मेरे,सांसों में समा जाओ
बैठो तुम पास मेरे,सांसों में समा जाओ

ना दिल का पता मेरे,ना मन का ठिकाना है
मेरा सब है पास तेरे,सांसों में समा जाओ

ना तुम से जुदा हूँ मैं,ना मुझ से अलग हो तुम
रम जाओ मन में मेरे,सांसों में समा जाओ

तुम ही मेरे लब की हंसी,तुम ही मेरे दिल की ख़ुशी
तुम दिल हो, जाँ हो मेरे,सांसों में समा जाओ

जब मेरी ज़रूरत हो,तुम दिल से बुलाना मुझे
हर लमहा हूँ पास तेरे,सांसों में समा जाओ

ना होश रहा मुझ में,ना कुछ भी याद रहा
मैं बस में नहीं हूँ मेरे,सांसों में समा जाओ

ना तुम शर्माना कभी,ना तुम घबराना  कभी
"लुत्फी"है साथ तेरे,सांसों में समा जाओ.........................
 भोली सूरत है कितनी बुरी
मेरे दिल पे चलाये छुरी

तेरे लब हैं की हैं जू-ए-मय
तेरी आँखें हैं मद से भरी

दोनों आलम में तुझ सा नहीं
अप्सरा है, तू  ही है परी

तेरी अंखियों की क्या दूँ मिसाल?
नीले मोती हैं जैसे धरी

दम ये घुटने लगा"लुत्फी"का
अपनी ज़ुल्फ़ों से कर दे बरी.............

Thursday, January 6, 2011

ग़म की दुनिया में आ के देख ज़रा...................................

राह-ए-उल्फत में आ  के देख ज़रा
ईश्क़ के गीत गा   के  देख ज़रा

अच्छे बीतेंगे तेरे रोज़-ओ-शब
मेरी यादों में खोके देख ज़रा

नदियाँ बनती हैं समंदर कैसे
मुझमें ख़ुद को समा के देख ज़रा

रंग उड़ते हैं कैसे ग़ैरों के
नाम मेरा तू ले के देख ज़रा

दिल मेरा क़ैद है तेरे दिल में
मुझसे तू दूर जा के देख ज़रा

ये घटायें बरसना भूलेंगीं
तू घटाओं पे छा के देख ज़रा

कब से दर्शन को तरसे हैं हम भी
रुख़ से आँचल हटा के देख ज़रा

हंस के जीते हैं कैसे"लुत्फी"जी
ग़म की दुनिया में आ के देख ज़रा...................................

Wednesday, January 5, 2011

वो तारे तोड़कर लाना हमें अच्छा नहीं लगता..............

किसी को बदगुमां कहना हमें अच्छा नहीं लगता
किसी के दिल को तड़पाना हमें अच्छा नहीं लगता


परी की पंखुड़ी सी तेरी बाँहों से बिछड़ जाना
वो ख्वाबों से तेरा जाना हमें अच्छा नहीं लगता 


तेरे रुख्सार पर नज़रें गड़ाना फिर हटा लेना
सबर कर-कर के रह जाना हमें अच्छा नहीं लगता


बिना तेरे हवाओं में वो रंगीनी नहीं आती
हसीं मौसम ये मस्ताना हमें अच्छा नहीं लगता


जो कह दे चाँद-तारों की अभी महफ़िल सजा दूँ मैं
वो तारे तोड़कर लाना हमें अच्छा नहीं लगता


ज़रा तू रूबरू हो ज़िन्दगी का जाम पी लूँ मैं
तेरा परदे में शर्माना हमें अच्छा नहीं लगता.......................

हुस्न आख़िर ख़ुदा नहीं होता .............

दिल का जब दर खुला नहीं होता
कोई अपना- परा नहीं होता


गर न आते वो मेरी बाँहों में
हाल दिल का बुरा नहीं होता


पूछ मत सबसे मेरे घर का पता
शख्स हर इक भला नहीं होता


तेरे आने से फूल खिल जाते 
बज़्म भी बेमज़ा नहीं होता 


उसको मैं पूजूँ क्यों मेरे "रामिश"!
हुस्न आख़िर ख़ुदा नहीं होता 

कैसी आफ़त पड़ी है या अल्लाह
दिल से यूँ दिल जुदा नहीं होता


सब हैं मोहताज तेरी रहमत के
यूँ किसी का भला नहीं होता


प्यार राहत  तलाशता ही नहीं 
दर्द जब दरमियाँ नहीं होता

वस्ल की खुशियों ने मिटा डाला 
वरना"लुत्फी" मरा नहीं होता..........

मैं तुझे नूर कहूँ,नूर का जादू भी कहूँ ...............

मैं तुझे फूल कहूँ,फूल की खुशबू भी कहूँ
जाने क्या सोचके मैं,आप कहूँ,तू भी कहूँ

रश्क ख़ुर्शीद करे,चाँद करे,तारे भी करें
मैं तुझे नूर कहूँ,नूर का जादू भी कहूँ 

तुझसे तारीकी मिटे,शोलों का सैलाब चले
शब की शम्मा मैं कहूँ,रात का जुगनू भी कहूँ


गुल के हर साँस में तू तेरी अदा है उनमें 
गुल से वाबस्ता है तू,शौक से गुलगूं भी कहूँ


महज़बीं तुझको कहूँ या मैं कहूँ चाँद को तू
चाँद में अक्स तेरा,इसलिए माह-ए-रू भी कहूँ.............

दिल का दीपक जला दिया होता............................

हाल दिल का सुना दिया होता
मुझको अपना बना लिया होता

ईश्क़ में मैंने रोना जाना नहीं
तुमने मुझको रुला दिया होता

वस्ल में उनसे दुश्मनी कर ली
हिज्र का ग़म भुला दिया होता

फिर किसी पर कभी न मरते हम
राज़ दिल का बता दिया होता

मै भी होता जहाँ में सबसे जुदा
ध्यान मुझ पर ज़रा दिया होता

राह में बैठी थीं बलाएँ अगर
तुमने मुझको बुला लिया होता

रात काली थी और अँधेरी थी
साथ मुझको सुला लिया होता

मरते-मरते भी ज़िन्दा हो जाते
रुख़ से आँचल हटा लिया होता

"लुत्फी"परवाना बनके मर-मिटता
दिल का दीपक जला दिया होता............................

Monday, January 3, 2011

हम हवा में परिंदे उड़ाते रहे.....................

वो निगाहों से जादू चलाते रहे
हम हवा में परिंदे उड़ाते रहे


कुछ न समझे की क्या बात थी दोस्तो?
घर मेरे रोज़ वो आते-जाते रहे


हमसे बिछड़े तो हम जैसे मर ही गए
हिज्र की मर वो भी तो खाते रहे


कोई बिछड़े किसी से ख़ुदा ना करे
उसकी रहमत सभी को मिलाते रहे


इश्क का दीप हम थे जलाने चले
कुफ़्र मिटने तलक हम जलाते रहे


प्यार में हद से आगे वो बढ़ते रहे
हम ही थे कि बहुत हिचकिचाते रहे


प्यार मुझसे भी ज़्यादा तो करते थे वो
ना समझ थे जो उनको सताते रहे


"लुत्फी"भटके नहीं इक तुझे छोड़कर
हुस्न अक्सर इन्हें आज़माते रहे.......................

हमें पता है वो हमसे ही प्यार करते हैं.................

पलक की ओट से छुप-छुप के वार करते हैं
हमें पता है वो हमसे ही प्यार करते हैं

वो उनकी ज़ुल्फ़ है जैसे कोई घना जंगल
हम उनकी ज़ुल्फ़ में घुस कर शिकार करते हैं

मिलें जो तनहा तो शर्म-ओ-हया करें ही नहीं
बड़े ही शौक से बातें दो-चार करते हैं

उधारी खाएं जो औरों की चुगलियाँ भी करें
भिकारी होके अमीरी शुमार करते हैं

अदा-ए-हुस्न से"लुत्फी"भी बच नहीं सकते
 अदा से अपने वो सबको बीमार करते हैं............